न्यायाञ्जनम् के बारे में
भारतीय ज्ञान परम्परा में न्याय-वैशेषिक दर्शन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। न्याय दर्शन के प्रणेता महर्षि गौतम है और वैशेषिक दर्शन के प्रणेता महर्षि कणाद हैं। वैशेषिक दर्शन में जहां पदार्थों का निरुपण है तो वहीं न्याय दर्शन में प्रमाणों का विवेचन है। इसीलिये वैशेषिक को पदार्थशास्त्र और न्याय को प्रमाण शास्त्र कहा गया है। वैशेषिक दर्शन प्राचीन भारतीय भौतिक विज्ञान है, जिसमें परमाणु, पञ्चभूत, सृष्टि प्रक्रिया आदि का सूक्ष्म विवेचन है। न्याय दर्शन में प्रत्यक्ष-अनुमान आदि प्रमाणों का गहन चिन्तन किया गया है। नव्यन्याय जो दोनों दर्शनों के सिद्धान्तों के समावेश के साथ बना है, जिसकी भाषाशैली एक विशिष्ट शब्दावली पर आधारित है, जो पूर्णरूप से गणितीय पद्धति पर आश्रित है। इस पद्धति का प्रयोग लक्षणों के परिष्कर या शास्त्रार्थ में तत्त्वनिर्णय व विजय प्राप्ति के लिये किया जाता है, जो कि एक पूर्ण वैज्ञानिक भाषा है।
न्याय-वैशेषिक दर्शन की भाषा की कठिनता के कारण इसके अध्ययन-अध्यापन में अत्यन्त अल्प लोगों की प्रवृत्ति होती है तथा शब्दों की जटिल संरचना के कारण सिद्धान्तों का सरलतया बोध नहीं हो पाता है, जबकि भौतिक विज्ञान के अनेकों प्रसिद्ध सर्वमान्य सिद्धान्तों व प्रक्रियाओं का प्रामाणिक वर्णन किया गया है। दीर्घकाय शब्दों की जटिल संरचना के कारण मात्र मौखिक अध्ययन-अध्यापन में अत्यन्त कठिनता होती है, जिससे छात्रों को पद-पदार्थों को समझने में अत्यन्त कठिनाई व देर लगती है। अत्यन्त कठिन परिश्रम से अध्ययनोपरान्त यह विद्या विद्वत् सभा व शास्त्रार्थ तक की सीमित रह जाती है, सर्व साधारण समाजोपयोगी न्यायविद्या नहीं बन पाती है तथा वैज्ञानिक सिद्धान्तों का स्वरुप कहीं पीछे रह जाता है।
न्याय दर्शन की उक्त समस्याओं को ध्यान में रखते हुये एक ऐसी शिक्षण सामग्री को निर्माण करने की आवश्यकता होती है, जो अत्यन्त सरलतम रूप में शास्त्रीय पद्धति को भी समझाये और वैज्ञानिक सिद्धान्तों का भी बोध कराये। यह तभी संभव है जब हम आधुनिक तकनीकी प्रौद्योगिकी का सहारा लेते हुये दृश्य-श्रव्य शिक्षण सामग्री का निर्माण करें। यह दृश्य-श्रव्य सामग्री शास्त्रीय व्याख्यान रूप में न होकर सिद्धान्तों व परिष्कार की प्रक्रियाओं को उनके शास्त्रीय स्वरुप के साथ उनके वास्तविक स्वरुप को प्रदर्शित करते हुये निर्माण की जाय। जिस प्रकार से चिकित्सा विज्ञान अथवा विज्ञान के क्षेत्र में एमिनेशन चलचित्र द्वारा सम्पूर्ण चिकित्सकीय विधि या वैज्ञानिकी संरचनाओं का दिखया जाता है, उसी प्रकार यदि न्याय दर्शन की भी दृश्य-श्रव्य सामग्री का निर्माण किया जाय तो निश्चित रूप से इस सामग्री द्वारा समाज को सरलतम रूप से भारतीय भौतिक विज्ञान के स्वरुप को जानने समझाने में सहायक होगी। साथ ही साथ नव्य न्याय के लक्षण परिष्कर पद्धति को ध्यान में रखते हुये यदि एक भाषा सहायक सामग्री (टूल) बनाया जाय जो विभिन्न लक्षणों के परिष्कर पद्धति को सरलतम रूप में समझाने में सहायक हो। न्याय दर्शन की इन्हीं समस्याओं के समाधान के रूप में ‘न्यायांजनम्’ नामक परियोजना भारतीय ज्ञान परंपरा विभाग, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के अनुदान द्वारा संचालित की जा रही है।
उद्देश्य
'न्यायाञ्जनम्' परियोजना का उद्देश्य है भारतीय ज्ञान परम्परा के सिद्धान्तों को आधुनिक परिवेश के अनुरूप सरलतम प्रभावी रूप में शिक्षण सामग्री का निर्माण करना, जिससे न केवल छात्रों अपितु समाज के सामान्य लोगों को भी भारतीय ज्ञान परम्परा का सरलतया बोध हो सके व इनके अध्ययन/अध्यापन में अधिकाधिक लोगों की प्रवृत्ति हो सके। 'न्यायाञ्जनम्' परियोजना उपर्युक्त उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुये भारतीय ज्ञान परम्परा के महत्त्वपूर्ण शास्त्र न्याय-वैशेषिक दर्शन को लेकर परिकल्पित है। भाषागत व सिद्धान्तगत कठिनता के कारण अत्यन्त अल्प संख्या में इसका अध्ययन-अध्यापन होता है। अत: समाज के लोगों की रुचि कैसे इस शास्त्र के अध्ययन में हो और इसके सिद्धान्तों को आसानी से समझा सकें, इसी बात को ध्यान में रखकर ‘न्यान्जनम्’ नामक परियोजना को क्रियान्वित किया जायेगा। विभिन्न कार्यशालाओं के द्वारा छात्रों व अध्यापकों को शिक्षण के समय आने वाली समस्याओं को संकलित करके उनके समाधान के रूप में इसका निर्माण किया जायेगा। प्रस्तावित इस परियोजना में जहां एक ओर भाषागत गणितीय पद्धति को सरलतम रूप में समझाने की प्रक्रिया पर बल दिया जायेगा तो वहीं दूसरी ओर सैद्धान्तिक स्वरुपों को प्रत्यक्ष रूप में दिखाकर उनकी सम्पूर्ण प्रक्रिया को दृश्य-श्रव्य (एनिमेशन) के मध्यम से निर्माण किया जायेगा। साथ ही साथ न्याय-वैशेषिक दर्शन के ग्रन्थों का संकलन भी एक स्थान पर डिजिटल रूप में किया जायेगा।
इस दृश्य-श्रव्य व टूल के मध्यम से जहां सरल भाषा में न्यायशास्त्र का कक्षाओं में शिक्षण होगा, जो अत्यन्त रोचकपूर्ण होने से शीघ्र बोधगम्य व प्रभावशाली होगा वहीं दूसरी ओर दृष्टिहीन व मूक-बधिर दिव्यांगों को भी इस दृश्य-श्रव्य सामग्री द्वारा अध्ययन कराया जा सकता है। तकनीकी प्रौद्योगिकी पर आधारित होने के कारण सम्पूर्ण सामग्री एक स्थान पर डिजिटल रूप में संग्रहित व संरक्षित रहेगी जिससे कहीं भी, किसी भी समय, कोई भी व्यक्ति आसानी से इस सामग्री का प्रयोग कर सकता है।