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आचार्य विद्वान् नवीन होल्ला

Created At: March 18, 2024

विद्वान नवीन होल्ला इनका जन्म 8 दिसंबर 1973 (मार्गशीर्ष शुद्ध त्रयोदशी) को बन्टवाला गांव, मङ्गलूर के पास दक्षिण कन्नड जिला, कर्नाटक में हुआ । इनके पिता का नाम वडेरहोबली महाबलेश्वर होल्ला और माता का नाम श्रीमती गिरिजा था । शिक्षा - विद्यादायिनी हाईस्कूल, सुरतकल से वर्ष 1989 में मैट्रिक परीक्षा पूरी की । सद्विद्या संजीविनी संस्कृत महापाठ शाला, श्रृंगेरी से नाटकांत साहित्य की पूर्ण शिक्षा वर्ष 1993 में की । 1994 से 1997 नरसिंहवन में परम पूज्य श्री श्री भारती तीर्थ जगद्गुरु जी के अमृत वचनों से नव्यन्याय शास्त्र का अध्ययन किया । 1998 से 2000 तक श्रृंगेरी मठ में वेदांतकेसरी श्री के. नारायण भट्ट जी से वेदांत शास्त्र का अध्ययन किया और इसी अवधि में ऋक्वेद संहिता का सम्पूर्ण अध्ययन किया । वंशपरम्परा – उडुपि जिला, कुन्दापुर नगर में वडेरुहुब्लि ग्राम में श्रीमती पार्वती श्री नरसिंह होल्ला दम्पति रहे थें। इनका भारद्वाज गोत्र और ऋग्वेद अध्यायि आश्वलायन सूत्र था । ये पौरोहित और कृषि कार्य करते थें । इन दोनों दम्पति के एक ही पुत्र सुब्राय थें । उनकी पत्नि शङ्करी थी । ये भी पौरोहित का काम करते थें । इन के चार पुत्र थे, इन में से सब से बड़े नरसिंह होल्ला जिनका अयप्पा होल्ला नामान्तर था । कृष्ण नाम से दूसरे बेटे, श्रीनिवास के तीसरे, चन्द्रशेखर इनका ही उड्डय नामान्तर भी है । इन में से बड़े बेटे की तीन सन्तान थी । पुंडरीकाक्ष, महाबलेश्वर, तीसरि लड़की शकुन्तला थी । बस्रूर नामक गाँव में एक श्री महालिङ्गेश्वर देवालय था । उस में नरसिंह होल्ला जी एक अर्चक रुप में काम करते थें और उसी देवालय का प्रशासन कार्य भी ये ही समालते थें । इन के साथ में महादेव होल्ला, सदाशिव होल्ला भी सहायक रूप में काम करते थें । ये अयप्पा होल्ला (नरसिंह होल्ला) जी घर में शिवलिङ्ग पूजा, गणपति पूजा, शालिग्राम पूजा, देवी पूजा, बालगोपाल पूजा करते थें । इन सब देवताओं की पूजा करने के बाद पार्थिवेश्वर पूजा भी करते थें । पार्थिवेश्वर पूजा मतलब बसरूर में जो देवालय था उस देवालय में विद्यमान वल्मीक का मिट्टि से शिवलिङ्ग निर्माण करने के बाद उसका पूजा करना । पूजा के बाद में उस शिवलिङ्ग को घर के विद्यमान कुवें के जल में विसर्जन करते थें । इसी क्रम से पार्थिव पूजा प्रतिदिन करते थें । इनका 1948 में स्वर्गवास हो गया था । ये उस समय 55 साल के थें । इनका पत्नी का नाम महालक्ष्मी था । 1938 में, महाबलेश्वर होल्ला जी का जन्म हुआ था । जब इनके पिता जी का स्वर्गवास हुआ था । उस समय ये दस साल के थें । इनने दस कक्षा समाप्ति तक कुन्दापुर नगर में ही अध्ययन किया । उस समय रामकृष्ण नावण उनका कोई सम्बन्धि जो हिन्दी के पण्डित थें । वें मेङ्गलुरु नगर में रहते थें । उन्होंने इनको अध्ययन करने के लिए सहायता किया था । दस कक्षा समाप्ति के बाद इनकी माता महालक्ष्मी इन को धारवाड को भेजि थी । वहाँ किसी परिचित के घर में रहकर इन्होंने typing इत्यादि का अध्ययन किया । वहाँ से थोड़े समय के बाद बेङ्गलुरु नगर आये और वहाँ काम करना आरम्भ किया । बहुत छोटे छोटे संस्थाओं में काम करने के बाद में किशान कम्पनि में काम मिला । उस के बाद किसी परिचित के सहायता से MCF (Mangalore Chemicals & Fertilizers Limited) संस्था में काम मिला । उस संस्था का मुख्य कार्यालय बेंगलुरु में है । उस ही संस्था का एक कम्पनि मङ्गलुरु में भी है । इन्होंने बेङ्गलुरु में विद्यमान कम्पनी में काम किया । फिर 1972 में इनका मङ्गलुरु के लिए स्थानान्तर हुआ । इस समय ही इनका विवाह भी हो गया था । श्रीमती सावित्री नारायण कारन्त दम्पति के दो बेटे और पाँच बेटियाँ थीं । ये मङ्गलुरु के पास पणम्बूर नामक गाँव में श्रीनन्दनेश्वर मन्दिर और विष्णुमूर्तिमन्दिर के आगे विशाल घर में रहते थें । इन पाँच लड़कीयों में अन्तिम गिरिजा नाम की थी । उन के साथ महाबलेश्वर होल्ला जी का विवाह हुआ 1972 में । 1940 में गिरिजा का जन्म हुआ था । ये विवाह से पहले ही हर सोमवार का व्रत रखती थीं । शिव भगवान की भक्ति में थी । उन्होंने अन्तिम समय तक भी सोमवार का व्रत रखा । श्रीनन्दनेश्वर देवालय और श्रीविष्णुमूर्ति मन्दिर अभी भि है । उनका पुराना घर तो अभी नहीं है । इन दोनों दम्पती के तीन सन्तान थी, श्री देवराज होल्ला, श्री नवीन होल्ला, श्री राघवेन्द्र होल्ला । बड़े चाचा जी जब उडुपि नगर में अध्ययन कर रहे थे तभी उनको अचानक आनकाल नामक रोग आगया । जिससे पैर में सूजन आ जाता है । उस कारण वो घर को आगये । वें ब्रह्मचारि ही रहे । महाबलेश्वर होल्ला जी ने सुरतकल में अपना घर का निर्माण किया । वहाँ हर दिन पञ्चायतन पूजा होती थी । ये हरदिन पूजा करने के बाद ही काम को जाते थें । रात को हर दिन तीनों लड़को को सन्ध्यावन्दन समाप्ति के बाद माता जी भजन करवाती थी और स्वयं भी करति थीं । गुरुपरम्परा – जगद्गुरु श्री श्री भारती तीर्थ महास्वामी जी श्रृङ्गेरी शारदा पीठ के वर्तमान जगद्गुरु, सर्वोच्च परमहंस सम्प्रदाय के संन्यासी, यकीनन आज वेदान्त और शास्त्रों के सबसे अग्रणी विद्वान हैं । इनका जन्म 11 अप्रैल, 1951 को उनके पिता वेंकटेश्वर अवधानी और माता अनन्तलक्ष्मी अम्बा की लंबी प्रार्थना और व्रत के परिणामस्वरूप हुआ था । 1966 में, उन्होंने 15 वर्ष की उम्र में कुंवारे व्यक्ति के रूप में तत्कालीन शृङ्गेरी जगद्गुरु श्री श्री अभिनव विद्यातीर्थ महास्वामी जी से आशीर्वाद और शास्त्रों में शिक्षा प्राप्त करने के लिए संपर्क किया । पूर्वाश्रम में आचार्य जी का नाम सीताराम अंजनेयुलु था । 1974 में, जिस दिन उन्हें संन्यास की दीक्षा दी गई । जिस के अनुसार उनका नाम श्री श्री भारतीतीर्थ महास्वामी पढ़ा । तथा दक्षिणाम्नाय श्री शारदा पीठ के 36 वें जगद्गुरु बने । जगद्गुरु श्री श्री भारती तीर्थ महास्वामी जी को उनकी मातृभाषा तेलुगु की तुलना में अक्सर संस्कृत में बात करते देखा जाता था । जीवन में काफी पहले ही उन्होंने व्याकरण, साहित्य, तर्कशास्त्र (न्यायशास्त्र) का अध्ययन पूरा कर लिया था । इनका गुरु के प्रति अत्यन्त समर्पण भाव था । दक्षिणाम्नाय श्री शारदा पीठ के 35 वें जगद्गुरु श्री श्री अभिनव विद्यातीर्थ महास्वामी जी इनके गुरु जी थें । श्री अंजनेयुलु ने श्री गोलापुड़ी गोपालकृष्णमूर्ति शास्त्री के अधीन तर्कशास्त्र के ग्रंथों का अध्ययन किया । तत्त्वचिंतामणि पर टीका हमारे न्याय शास्त्र का मूल पाठ "दीधिति", "श्री जगदीश भट्टाचार्य, श्री गदाधर भट्टाचार्य ने दिधिता पर टीकाएँ लिखीं । श्री गोलापुड़ी गोपालकृष्णमूर्ति शास्त्री ने श्री राजेश्वर शास्त्री के अधीन काशी के प्रसिद्ध विद्वान जगदीश भट्टाचार्य के ग्रंथों का अध्ययन किया । विद्वान नवीन होल्ला जी ने 1994 से 1997 तक परम पूज्य श्री श्री भारती तीर्थ जगद्गुरु जी के अमृत वचनों से नव्य न्याय शास्त्र का अध्ययन किया । आत्मानन्द स्वामी जी इनका संक्षेप में परिचय इस प्रकार है । इनका जन्म 17/12/1952 को कर्नाटक के हासन मण्डल के होलेनरसिपुरा गाँव में हुआ था । उनके माता श्रीमती सुन्दरवल्ली और पिता श्री रामस्वामी ऐ अंगार । ये बाल्य अवस्था में कभी पिता जी और माता जी के साथ शृङ्गेरी जगद्गुरु जी के पीठ में आये थें । तब श्री चन्द्रशेखर भारती महास्वामी जी के दर्शन उनको प्राप्त हुए । तब चन्द्रशेखर भारती महास्वामी जी ने इस बालक के सिर में हाथ रखकर आशीर्वाद के साथ अनुग्रह किया । ये तो लौकिक विद्या का अध्ययन किये थें । इन्होंने MSC किया हुआ है । इनने इस पर स्वर्णपदक भी प्राप्त किया है । बाद में ये योग से बहुत आकृष्ट हुए तथा योग के बारे में क्रम से जानना आरम्भ किया । उसके अनुसार योग मार्ग में बहुत ज्यादा साधन किये । परमहंश योगानन्द जी का साधनमार्ग का अनुसरण किये बाद में इनने गणेशपुरी नित्यानन्द जी से शक्तिपाद की दीक्षा प्राप्त की । तथा नेपाल में पशुपति मन्दिर के पीछे एक स्थल में कोई बाबा जी रहते थें उनके पास से भी इन्होंने दीक्षा लियी । इन्होंने बहुत जगह योग्य छात्रों को दीक्षा दिया है । इनके पास विद्वान नवीन होल्ला जी ने शक्तिक्रिया योग की दीक्षा प्राप्त किया था 2006 में । 25/11/2017 को योगी आत्मानन्द जी का देह त्याग हुआ । जब विद्वान नवीन होल्ला जी शृङ्गेरी मठ की पाठ शाला में पढ़ रहते थें । उस समय के गुरुजन – साहित्य-व्याकरण-काव्य का पाठ एन जी नरसिंह मूर्ति भट्ट जी ने पढ़ाया था । ये मठ के आस्थान विद्वान थें और विश्वनाथ शास्त्री जी, एम वि. नरसिंह मूर्ति शास्त्री जी ने पढ़ाया था । इनके वेद पढ़ाने वाले गुरु जी वेदब्रह्म श्री अनन्त भट्ट जी और वेदब्रह्म श्री प्रभाकर दीक्षित, कृष्णमूर्ति भट्ट, यज्ञेश्वर आहितानल इन सब गुरुजनों से वेद का अध्ययन किया । श्रीमान नाराय़ण भट्ट इनका जन्म मार्च महीने के पन्द्रहवें तारीख को केरलराज्य के कासरगोड उपमण्डल में कारड गाँव में कूवेकल्लुगृहं नामक कुटुम्ब में 15/3/1926 श्रीमती लक्ष्मी अम्मा श्रीमान माधवभट्ट दम्पती के पुत्र के रूप जन्म हुआ था । बाल्यकाल में ही भट्ट महोदय जी को संस्कृत साहित्य में रुचि हो गई और अपने पिता जी से शास्त्रों का अध्ययन किया । इन्होंने वेदान्त विद्वान श्री नवीन वेंकटेश शास्त्री जी से वेदान्त विद्या का अध्ययन किया है और प्राचीननवीनन्यायशास्त्र, पूर्वोत्तरमीमांसा, अलङ्कारशास्त्र में विद्वान उपाधि प्राप्त किई । इन्होंने शृङ्गगिरि में श्री शारदापीठ की सद्विद्यासंजीवनी संस्कृत महापाठशाला में और महिशुरपुरी में महाराजा संस्कृत महापाठशाला में अध्ययन किया और एक शिक्षक के रुप में इन्होंने वहीं कई छात्रों को पढ़ाया । उसके बाद इन्होंने थोड़े समय के लिए कालटी में शृङ्गेरी शंकर मठ में अद्वैत वेदान्त के ग्रन्थों को पढ़ाया । 1995 में, श्रीमान दक्षिणाम्नाय श्रीशारदा पीठ में जगद्गुरु श्री श्री भारतीतीर्थ महास्वामी जी के चरणों में रहते हुये कई छात्रों को पढ़ाया । छात्रों के लाभ के लिए श्री नारायण भट्ट जी ने अद्वैतसिद्धि ग्रन्थ की, लघुचन्द्रिका की प्रकाश नामक व्याख्या की रचना किई । इन्होंने श्रीमदप्पाय दीक्षित द्वारा रचित न्यायरक्षमणि की भी व्याख्या की । इन्हें 1998 में, कर्नाटक राज्य प्रशस्ति और भारत सरकार के राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था । दक्षिणाम्नाय श्री शारदा पीठ के जगद्गुरु श्री श्री भारतीतीर्थ महास्वामी जी ने इन्हें वेदान्त केसरी की उपाधि प्रदान की । राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ तिरुपति ने इन्हें महामहोपाध्याय की उपाधि से सम्मानित किया गया । दर्शनाचार्य, शास्त्रविद्यानिधि, शास्त्ररत्नाकर इत्यादि उपाधियों से अलङ्कृत हैं । तथा ऋषि के समान पूजनीय हैं । इनसे विद्वान नवीन होल्ला जी ने 1998 से 2000 तक वेदांत शास्त्र का अध्ययन किया था । डिग्री ➤ नव्य न्याय में विद्वदुत्तमा । ➤ कर्नाटक राज्य मुक्त विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए । ➤ पीएच.डी. (विद्यावारिधि) न्याय में (राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ तिरूपति) ।  अद्वैत वेदांत में आचार्य (राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ तिरूपति)। शिक्षण - • सद्विद्या संजीवनी संस्कृत महापाठशाला, श्रृंगेरी में, 1998 से 2003 तक शिक्षक के रूप में कार्य किया । राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ तिरूपति में वर्ष 2004-05 शास्त्र वारिधि परियोजना में आचार्य के रूप में कार्य किया । • 17 जून 2005 को राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के श्रृंगेरी परिसर में सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किए गये और 2005-2019 तक 14 साल तक वहाँ काम किया । • 2019 में, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के गुरुवायूर परिसर केरल में प्रोफेसर और न्याय विभाग के एचओडी के रूप में एक साल काम किया है । वर्तमान में केन्द्रिय संस्कृत विश्वविद्यालय के शृङ्गेरी परिसर में प्रोफेसर और न्याय विभाग के एचओडी के रूप में कार्यरत है । प्रकाशन - 1. परम पूज्य जगद्गुरु श्री श्री भारती तीर्थ जी के आशीर्वाद तथा संदेश के साथ राष्ट्रीय संस्कृति संस्थान के राजीव गांधी परिसर द्वारा प्रकाशित सत्प्रतिपक्ष शतकोटि पर एक व्याख्या विवेचनी लिखी 2005 में । 2. अगस्त 2013 में, श्री शंकर अद्वैत अनुसंधान केंद्र, श्रृंगेरी द्वारा प्रकाशित तत्त्वचिन्तामणि के अन्यथाख्यातिवाद पर एक दीपिका नाम की टिप्पणी लिखी । 3. 'तर्कसंग्रह' पर प्रत्यक्ष और अनुमान के लिए एक टिप्पणी यज्ञनारायण शास्त्री द्वारा लिखित "न्यायशेखरी" का संपादन विद्वान नवीन होल्ला जी द्वारा लिखित उपमान और शब्द खंड श्री शंकर अद्वैत अनुसंधान केंद्र, श्रृंगेरी द्वारा सितंबर 2010 में प्रकाशित हुई । 4. धर्मितावच्छेदकप्रत्यासत्ति विचार पर एक टिप्पणि लिखी और उसका संपादन अगस्त 2014 में श्री शंकर अद्वैत अनुसंधान केंद्र, श्रृंगेरी द्वारा प्रकाशित किया गया । 5. तर्कप्रवेशः- कणादसरणिः 'तर्क प्रवेश' श्रृंखला की पहली पुस्तक है, जो मुख्य रूप से कणाद के वैशेषिक दर्शन पर आधारित है । जो सात 'पदार्थ' की अवधारणा से संबंधित है । संस्कृत संवर्धन प्रतिष्ठान, नई दिल्ली द्वारा 2018 में प्रकाशित हुई । 6. तर्कप्रवेशः-गौतमसरणिः 'तर्क प्रवेश' श्रृंखला की दूसरी पुस्तक है, जो मुख्य रूप से गौतम के न्याय दर्शन पर आधारित है, जो चार 'प्रमाण' और बारह 'प्रमेय' की अवधारणा से संबंधित है । प्रज्ञानं संस्था द्वारा 2019 में प्रकाशित हुई । 7. न्याय प्रवेश - न्यायवैशेषिकशास्त्रान्तर्गतप्रकरणग्रन्थेभ्यः तद्व्याख्याभ्यश्च सकलितः परिष्कृतश्च । प्रज्ञानं संस्था द्वारा 2019 प्रकाशित में हुई । 8. "शांति गीता" कन्नडभाषा के अनुवाद के साथ उपनिषद, स्मृति, पुराण, महाभारत से चुने गए श्लोकों का एक संग्रह, जो भारतीय दर्शन और संस्कृति के मौलिक सिद्धांत का वर्णन करती है । परम पूज्य जगद्गुरु श्री श्री भारती तीर्थ महास्वामी जी के आशीर्वाद और संदेश के साथ 3 अगस्त 2009 को प्रकाशित हुई । 9. "गीतामृतं" 11 अध्यायों में विभाजित लगभग 400 श्लोकों का एक संग्रह जिसे भगवद्गीता के साथ शंकर भाष्य और मधुसूदनी से चुना गया है । श्रृंगेरी के शंकरा-चार्य परम पूज्य जगद्गुरु श्री श्री भारती तीर्थ महास्वामी जी के आशीर्वाद और संदेश के साथ 28 नवंबर 2009 में प्रकाशित हुई । 10. 'गायत्री दर्शन' देवी भागवत, स्मृतियों उपनिषत से चयनित श्लोकों का संग्रह गायत्री उपनिषद आदि कन्नड अनुवाद के साथ । प्रज्ञानं संस्था द्वारा 2019 में प्रकाशित हुई । 11. 2010 में नीलकण्ठ दीक्षित द्वारा लिखित 'शांति विलासा' का कन्नड अनुवाद किया । 12. 'कत्तलेयिंदा बेलाकिनत्त' (कन्नड) 2014 में ‘रामकृष्णवचनवेद’ का सार कन्नड में प्रकाशित हुई । 13. राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, राजीव गांधी परिसर २०१६ में "अन्वीक्षानयमञ्जरी" के सम्पादक के रूप में काम किया । 2011 में, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, राजीव गांधी परिसर, श्रृंगेरी में "वाक्यार्थभारती" के सम्पादक के रूप में काम किया । 2015 में, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, राजीव गांधी परिसर, श्रृंगेरी में "शारदा" के सम्पादक के रूप में काम किया । 2018 में, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, राजीव गांधी परिसर, श्रृंगेरी में "शारदा" के सम्पादक के रूप में काम किया । राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली, मुक्त स्वाध्याय पीठ के लिए 2014 में व्युत्पत्तिवाद का पाठ लिखा है । लालबहादुर शास्त्री संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के लिए 2015 में सर्वदर्शनसंग्रह पर अक्षपाद दर्शन का पाठ लिखा । अनुसंधान मार्गदर्शन –पाँच व्यक्तियों का अनुसन्धान हो गया है । जिनका नाम इस प्रकार है – नागपति हेगडे, सुनीता भट्ट, राघवेन्द्र आरोल्ली, नारायण रायकर, सन्दीप कानेट्कर, वाणी एम हेगडे और एक व्यक्ति वर्तमान में इनके मार्गदर्शन में काम कर रहे है । सेमिनार/कार्यशाला/सम्मेलन- 1. इन्होंने 1995 से 2017 तक श्रृंगेरी के जगद्गुरु श्री श्री भारती तीर्थ महास्वामी जी की उपस्थिति में हर साल आयोजित महागणपति वाख्यार्थ विद्वत सभा में भाग लिया है । 2004 में, महागणपति वाक्यार्थ सभा में स्वर्ण अँगूठी से सम्मानित किये गये । शास्त्रपोषक सभा, तेनाली (आ.प्र) 2005 के परीक्षक के रूप में नियुक्त हुए । 2006 में (21 मार्च) पूर्ण प्रज्ञा विद्यापीठ, बेंगलुरु के स्वर्ण जयंती समारोह पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लिया था । 2006 में जम्मू में आयोजित ऑल इंडिया ओरिएंटल कॉन्फ्रेंस के पंडित परिषद में (12-14 अक्टूबर) को भाग लिया । जगद्गुरु रामानंद राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर में "व्युत्पत्तिवाद" विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लिया, और 2007 (7) अक्टूबर में शोध पत्र प्रस्तुत किया । 26-28 मार्च 'शतकोटि क्रोदपत्रं' सिखाया, जिसे 2007 में 'ऑडियो वीडियो डॉक्यूमेंटेशन प्रोजेक्ट' के तहत राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ तिरुपति में रिकॉर्ड किया गया था । 20 दिसम्बर 2007 को अवधूत दत्तपीठ मैसूर में अखिल भारत शास्त्र सदास में भाग लिया । 28 मार्च 2008 को पूर्णप्रज्ञा संशोधन मंदिर, बैंगलोर में 'बंधन की स्वरूप और न्याय-वैशेषिक प्रणाली के अनुसार इसकी समाप्ति के साधन' विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लिया । 16 मई से 12 जून 2008 तक मैसूर विश्वविद्यालय के अकादमिक स्टाफ कॉलेज में यूजीसी प्रायोजित ओरिएंटेशन कार्यक्रम में भाग लिया । राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान में, न्याय शास्त्र के लिए अध्ययन बोर्ड में सदस्य के रूप में नियुक्त किये गये, और मार्च 2009 में मुख्यालय, नई दिल्ली में अध्ययन बोर्ड में भाग लिया था । 4-7 नवंबर 2009 में, वाराणसी सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में आयोजित बृहत शास्त्रार्थ सम्मेलन में प्रतिभाग किया था । दिसम्बर 2009 में, इन्होंने राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ तिरुपति में "दिनकरीय गुणखंड' पढ़ाया, जिसे 'ऑडियो वीडियो डॉक्यूमेंटेशन प्रोजेक्ट' के तहत रिकॉर्ड किया गया । जनवरी-फरवरी 2010 में, राजीव गांधी परिसर, श्रृंगेरी में न्याय सिद्धांत मुक्तावली पर एक कार्यशाला का समन्वय किया । 2 से 4 जून 2010 को तिरूपति में आयोजित अखिल भारतीय प्राच्य सम्मेलन के पंडित परिषद में भाग लिया और अपनी सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुति के लिए पुरस्कार जीता । राष्ट्रीय संस्कृत नई दिल्ली में 'हेत्वाभास' के विषय पर व्याख्यान दिया और चर्चा में भाग लिया । जून 2011 को कालिदास संस्कृत अकादमी उज्जैन (म.प्र.) में एक कार्यशाला में भाग लिया, और तर्कसंग्रह दीपिका भी पढ़ाया था । 2 और 3 अक्टूबर 2012 को जम्मू में आयोजित ऑल इंडिया ओरिएंटल कॉन्फ्रेंस के पंडित परिषद में भाग लिया था । 27 फरवरी 2012 को श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय, कालडी में, राष्ट्रीय सेमिनार के दौरान न्याय में शाब्दबोध पर पेपर प्रस्तुत किया । 2013 में, 5 मार्च से 25 मार्च तक हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी में पुनश्चर्या पाठ्यक्रम में भाग लिया । 'अनुसंधान पद्धति, और पांडुलिपि विज्ञान ' इस विषय पर इन्होंने 21 दिवसीय कार्यशाला का समन्वय किया । इन्होंने 2014 में, 16 जून से 6 जुलाई तक श्रृंगेरी के राजीव गांधी परिसर में, 'शास्त्रानु-शीलनम्' का आयोजन किए थें । 2014 में, श्री वेंकटेश्वर वेद शास्त्रागम विद्वत सदास, तिरुपति के परीक्षक के रूप में नियुक्त हुये थें । जुलाई 2015 को थाईलैंड के बैंकॉक में आयोजित 16वें विश्वसंस्कृत सम्मेलन में भाग लिया था । दिसंबर 2015 में, राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, तिरूपति में एम.एम.पट्टाभिरामशास्त्री व्याकरण-माला में एक व्याख्यान दिया, और 'हेत्वाभास' पर आयोजित चर्चा में भाग लिया । 11 और 12 जनवरी 2016 को राजीव गांधी परिसर, श्रृंगेरी में आयोजित 'निरुक्तमवलम्ब्य नैयायिकशाब्द-सिद्धांतानां परिशीलनम्' इस विषय पर राष्ट्रीय सेमिनार में पेपर प्रस्तुत किया । मार्च 2016 में, राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, तिरूपति में आयोजित कल्पतरु परिमल के अनुसार `परमाणु विमर्श' इस विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लिया और पेपर प्रस्तुत किया । मार्च 2016 में, शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय कालडी केरल में 'न्याय कुसुमांजलि के पांचवें अध्याय' पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लिया और पेपर जमा किया । श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय कालडी में 'अध्यास' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लिया और मई 2016 में पेपर जमा किया । 22-01-2018 को राजीव गांधी परिसर, श्रृंगेरी में आयोजित 'ज्ञानकर्मणोः पुरुषार्थसाधन-ताविमर्श:' इस विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में पेपर प्रस्तुत किया । 09-04-2018 से 12-04-2018 तक पूर्वी सिक्किम सरकार रिसोर्स पर्सन संस्कृत महाविद्यालय, सैमडोंग में, "वर्तमान संदर्भ में संस्कृत साहित्य का महत्व" इस विषय पर अंतर्राष्ट्रीय (देश के भीतर) सेमिनार में भाग ग्रहण किया था । इन्होंने फरवरी 2020 में, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के गुरुवायूर परिसर में वेदांत पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के दौरान सत्र अध्यक्ष के रूप में एक पेपर भी प्रस्तुत किया था । फरवरी 2020 में सीएसयू गुरुवायूर परिसर में छात्रों के लिए शास्त्रार्थ सभा का आयोजन किया गया । जिस में गुरुवायूर परिसर, श्रृंगेरी परिसर और चिन्मय विश्वविद्यालय के 25 से अधिक छात्रों ने वाक्यार्थ प्रस्तुत किया । प्राप्तपुरस्कार- 1. इनको फरवरी 2020 में, राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ तिरूपति द्वारा "न्यायरत्नाकर" की उपाधि से सम्मानित किया गया । 2. इन्हें अप्रैल 2021 में, श्रृंगेरी शारदापीठ द्वारा "भारतीतीर्थपुरस्कार" से सम्मानित किया गया । 2017 में, इन्होंने प्रज्ञानं नाम की एक संस्था भी आरम्भ की है । जिसका मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करना है । इन्होंने इस संस्था के अन्तरगत बहुत सारे ग्रन्थों का प्रकाशन किया है । वें इस प्रकार हैं – (तर्कप्रवेश गौतमसरणिः(संस्कृत भाषा में न्याय शास्त्र का प्रवेश ग्रन्थ), तर्कप्रवेश कणादसरणिः (संस्कृत भाषा में वैशेषिक शास्त्र का प्रवेश ग्रन्थ) , नव्यसरणिः(नव्यन्याय का ग्रन्थ), व्याप्तिशतकोटिः(नव्यन्याय का परिष्कार ग्रन्थ), ) गुरुतत्त्वदीपिका (संस्कृत में ) धर्मसंहिता (कन्नडभाषा अनुवाद सहित) भाग 1 और भाग 2, धर्मसंहिता (हिन्दी भाषा अनुवाद सहित) भाग 1, गायत्रीदर्शन (कन्नडभाषा अनुवाद सहित) आत्मविद्याविलासः (कन्नड अनुवाद सहित) दिनदर्शिका (कन्नडभाषा में) । इसी संस्था ने तर्कप्रवेश कणाद सरणि परीक्षा, तर्कप्रवेश गौतमसरणि परीक्षा, धर्मसंहिता प्रवेश परीक्षा, धर्मसंहिता परीक्षा, शंकरमनन परीक्षा, भगवत स्तोत्र कण्ठपाठ परीक्षायें आयोजित की हैं । तथा प्रति वर्ष इसि संस्था से युवा विद्वानों के लिये शास्त्रार्थ सभा भी आयोजित करते है, अपने घर में ही । शंकरमनन परीक्षा कन्नड भाषा एवं संस्कृत भाषा में आयोजित की जिस में सौ से ज्यादा व्यक्तियों ने भाग ग्रहण किया । उन में से ज्यादा अंक जिस ने प्राप्त किए उनको यथा रूप पुरस्कार दिया है । इस संस्था के अन्तर्गत 15 से ज्यादा ग्रन्थों का सम्पादन हो गया है और इसी संस्था ने ग्रन्थ रचना स्पर्धा भी रखि थी । क्रम संख्या लेख का नाम पत्रिका का नाम वर्ष 1 हेत्वाभाससामान्यनिरुक्तौ अत्र वदन्ति कल्पविचारः विद्वत्प्रतिभा, अद्वैतशोधकेन्द्रम्, Sringeri. 2005 2 अनुमानप्रमाणम् शारदा,R.G.Campus, Sringeri. 2005-2006 3 संशयपक्षताविचारः विद्वत्प्रतिभा,अद्वैतशोधकेन्द्रम्, Sringeri. 2006 4 परमाणुजगत्कारणतावादः वाक्यार्थभारती, R.G.Campus, Sringeri. 2006-2007 5 मनोविचारः शारदा,R.G.Campus, Sringeri. 2006-2007 6 उपाधिविचारः शारदा,R.G.Campus, Sringeri. 2007-2008 7 ईश्वरसिद्धिः वाक्यार्थभारती, R.G.Campus, Sringeri. 2007-2008 8 कार्यकारणभावः सद्विद्या, Sringeri. 2007-2008 9 अनुगतभ्रमत्वविचारः विद्वत्प्रतिभा, अद्वैतशोधकेन्द्रम्, Sringeri. 2008 10 अन्यथाख्यातिवादः वाक्यार्थभारती, R.G.Campus, Sringeri. 2008-2009 11 न्यायवैशेषिकदर्शनयोः बन्धमोक्षविचारः शारदा,R.G.Campus, Sringeri. 2008-2009 12 ज्ञानानां विशिष्टवैशिष्ट्यावगाहितायाः विमर्शः संस्कृतविमर्शः 2009 13 ज्ञानानां परप्रकाश्यत्वम् वाक्यार्थभारती, R.G.Campus, Sringeri. 2009-2010 14 अपेक्षाबुद्धेः क्षणत्रयावस्थायितायाः विमर्शः सद्विद्या, Sringeri. 2009 15 गुणे गुणानङ्गीकार इति नियमविमर्शः शारदा,R.G.Campus, Sringeri. 2009-2010 16 परामर्शलक्षणम् वाक्यार्थभारती, R.G.Campus, Sringeri. 2010-2011 17 न्यायस्त्रोतसो विशृङ्खलधाराः शारदा,R.G.Campus, Sringeri. 2010-2011 18 हेत्वाभासलक्षणे अव्यापकविषयताशून्यत्वदलविचारः विद्वत्प्रतिभा, अद्वैतशोधकेन्द्रम्, Sringeri. 2010 19 विशषदर्शनोत्तरप्रत्यक्षम् पण्डितपरिषद्व्याख्यान-माला , Tirupathi. 2010 20 गुणसाधर्म्यविचारः विद्वत्प्रतिभा, अद्वैतशोधकेन्द्रम्, Sringeri. 2011 21 प्रतियोग्यसमानाधिकरणत्वविचारः विद्वत्प्रतिभा, अद्वैतशोधकेन्द्रम्, Sringeri. 2012 22 सन्निकर्षवादः वाक्यार्थभारती, R.G.Campus, Sringeri. 2012-2013 23 अप्रमात्वविचारः विद्वत्प्रतिभा, अद्वैतशोधकेन्द्रम्, Sringeri. 2013 24 The Motor Homunculus or Little man शारदा,R.G.Campus, Sringeri. 2014-2015 25 ज्ञानसामग्रीणां प्राबल्यदौर्बल्यविचारः वाक्यार्थभारती, R.G.Campus, Sringeri. 2014-2015 26 यागस्य फलसाधनताविमर्शः सद्विद्या,Sringeri. 2015 27 तत्त्वान्वेषणे साधनसरणिः शारदा,R.G.Campus,Sringeri. 2015-2016 28 शक्तिविमर्शः वाक्यार्थभारती, R.G.Campus, Sringeri. 2016 29 निरुक्तावलम्बनेन नैयायिकशाब्दसिद्धान्तानां परिशीलनम् शाब्दबोधविमर्शः, 2016 30 उद्भिद्-प्राणसम्बन्धस्य विमर्शः वाक्यार्थभारती, R.G.Campus, Sringeri. 2017 31 योगः कर्मसु कौशलम् शारदा, R.G.Campus, Sringeri. 2017 32 योगाद् रूढेः बलीयस्त्वम् वृत्तिविचारः, R.G.Campus, Sringeri. 2017 33 तमोवादः कन्दलीन्यायमञ्जरी, R.G.Campus, Sringeri. 2017 34 काणादकणवादरहस्यम् फुल्लराजीव सौरभम्, R.G.Campus, Sringeri. 2018 35 न्यायदर्शने अपवर्गः वाक्यार्थभारती, R.G.Campus, Sringeri. 2018 36 योगसिद्धान्तसमीक्षणम् योगध्यानयोः पालिप्राकृतसंस्कृतवाङ्मयानां योगदानम्, R.G.Campus, Sringeri. 2018 प्राप्त पुरस्कार के चित्र तथा पुरस्कार प्राप्त करते समय के चित्र

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