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न्यायदर्शनम्

Created At: January 27, 2024



महर्षि गौतम सप्तर्षियों में से एक हैं। वे वैदिक काल के एक महर्षि एवं मन्त्रद्रष्टा थे। ऋग्वेद में उनके नाम से अनेक सूक्त हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार पत्नी अहिल्या थीं जो प्रातःकाल स्मरणीय पंच कन्याओं गिनी जाती हैं। गौतम न्यायशास्त्र के प्रवर्तक हैं। प्रख्यात न्यायसूत्रों के निर्माता का नाम पद्मपुराण (उत्तर खंड, अध्याय 263), स्कंदपुराण (कालिका खंड, अ. 170, गांधर्व तंत्रनैषधचरित (सर्ग 17) तथा विश्वनाथ की न्यायवृत्ति में महर्षि गौतम या (गौतम) ठहराया गया है। इसके विपरीत  न्यायभाष्यन्यायवार्तिकतात्पर्यटीका तथा न्यायमंजरी आदि विख्यात न्यायशास्त्रीय ग्रंथों में अक्षपाद इन सूत्रों के लेखक माने गए हैं। महाकवि भास के अनुसार न्यायशास्त्र के रचयिता का नाम मेधातिथि है (प्रतिमा नाटक, पंचम अंक)। इन विभिन्न मतों की एक वाक्यता सिद्ध की जा सकती है। महाभारत (शांति पर्व, अ. 265) के अनुसार गौतम मेधातिथि दो विभिन्न व्यक्ति न होकर एक ही व्यक्ति हैं (मेधातिथिर्महाप्राज्ञो गौतमस्तपसि स्थितः)। गौतम (या गोतम) स्पष्टतः वंशबोधक आख्या है तथा मेधातिथि व्यक्तिबोधक संज्ञा है। अक्षपाद का शब्दार्थ है - 'पैरों में आँखवाला'

प्रमाणों के आधार पर अर्थ की परीक्षा करना 'न्याय' कहलाता है, अत: यह मुख्यत: प्रमाणशास्त्र है। इसका मूल ग्रंथ न्यायसूत्र है जिसमें पाँच अध्याय हैं तथा प्रत्येक अध्याय दो आह्निकों में विभाजित है। सारे सूत्रों की संख्या ५३० है। 

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